Bhagavad Gita: Chapter 14, Verse 26

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्यैतान्ब्रह्मभूयाय कल्पते ॥26॥

माम् मेरी; च-भी; यः-जो; अव्यभिचारेण-विशुद्ध विकारों के; भक्ति-भक्ति योग से; सेवते-सेवा करता है; स:-वह; गुणान्–प्रकृति के गुणों को; समतीत्य-पार कर; एतान्–इन सब; ब्रह्म-भूयाय-ब्रह्म पद की अवस्था; कल्पते-हो जाता है।

Translation

BG 14.26: जो लोग विशुद्ध भक्ति के साथ मेरी सेवा करते हैं, वे प्राकृतिक शक्ति के तीनों गुणों से ऊपर उठ जाते हैं और ब्रह्म पद के स्तर को पा लेते हैं।

Commentary

तीनों गुणों से परे स्थित प्रबुद्ध लोगों के लक्षणों की व्याख्या करने के पश्चात श्रीकृष्ण अब भौतिक प्रकृति के तीन गुणों से परे होने का एक मात्र उपाय प्रकट कर रहे हैं। उपर्युक्त श्लोक में इंगित किया गया है कि केवल आत्मा का ज्ञान और शरीर के साथ उसकी भिन्नता को जानना ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए भक्तियोग की सहायता से मन परम प्रभु श्रीकृष्ण में स्थिर करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप इच्छा मात्र से मन श्रीकृष्ण के समान निर्गुण हो जाएगा। कई लोग यह सोचते हैं कि यदि मन को भगवान के साकार रूप पर स्थिर किया जाता है तब यह लोकातीत अवस्था के स्तर तक नहीं उठेगा और जब इसे केवल निराकार ब्रह्म में अनुरक्त करते हैं, तब मन प्राकृत शक्ति के गुणों से परे हो सकता है किन्तु यह श्लोक इस मत का खण्डन करता है। भगवान का साकार रूप अनन्त गुणों से सम्पन्न है और ये सभी गुण दिव्य हैं तथा प्राकृत शक्ति के गुणों से परे हैं इसलिए भगवान का साकार रूप भी निर्गुण है। ऋषि वेदव्यास ने यह स्पष्ट किया है कि भगवान का साकार रूप किस प्रकार से निर्गुण है।

अस्तु निर्गुण इत्युक्तः शास्त्रेषु जगदीश्वरः

प्रकृितेर्हय संयुक्तेर्गुनैरहिनत्वमुच्याते (पद्म पुराण)

"धार्मिक ग्रंथों में जहाँ भी भगवान का उल्लेख निर्गुण के रूप में किया गया है उसका अर्थ यह है कि वह शारीरिक विशेषताओं से रहित है फिर भी उसका दिव्य व्यक्तित्व गुणों से रहित नहीं है वह अनन्त गुणों का स्वामी है।" इस श्लोक से साधना का उचित उद्देश्य प्रकट होता है। अलौकिक साधना का अर्थ शून्यता पर ध्यान देने से नहीं है। प्राकृतिक शक्ति के तीन गुणों से परे परम सत्ता की दिव्यता वास्तव में भगवान है इसलिए जब हमारी साधना का लक्ष्य भगवान होते हैं तब इसे वास्तव में अलौकिक साधना कहा जा सकता है।

Swami Mukundananda

14. गुण त्रय विभाग योग

Subscribe by email

Thanks for subscribing to “Bhagavad Gita - Verse of the Day”!